मानसिक स्वास्थ्य की इमरजेंसी बन रही चुनौती:अस्पतालों में नहीं साइकेट्रिक इमरजेंसी यूनिट

वो बस तनाव में है, थोड़ा वक्त दो ठीक हो जाएगा। लेकिन, कई बार यही थोड़ा वक्त जिंदगी और मौत के बीच की दूरी बन जाता है। भोपाल की गांधी मेडिकल कॉलेज की मानसिक रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रुचि सोनी कहती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संकट समय नहीं देखता। हमें ऐसी प्रणाली चाहिए जहां रात 2 बजे भी कोई मदद पा सके।
आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य, इसी दिशा की ओर इशारा करती है। स्थिति इतनी गंभीर है कि हर तीन मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। उनमें से ज्यादातर को कभी मानसिक उपचार नहीं मिला। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक मूक महामारी है, जो हमारे आसपास हर दिन, हर घर में चुपचाप बढ़ रही है।
डॉ. रुचि सोनी कहती हैं कि ऐसी स्थितियां उतनी ही खतरनाक हैं, जितनी किसी व्यक्ति को अचानक हार्ट अटैक आना। फर्क बस इतना है कि शरीर चीखता है और मन चुप रह जाता है।
केस 1 – परीक्षा से पहले का पैनिक शाहपुरा की 24 वर्षीय स्टूडेंट को परीक्षा से पहले तेज घबराहट होती थी। परिवार ने कहा साधारण तनाव है। एक दिन वह क्लास में बेहोश हो गई। उसका रक्तचाप और श्वसन दर खतरनाक स्तर पर थी। सौभाग्य से समय पर अस्पताल पहुंची तो जान बची। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टरों ने शुरुआती इलाज के बाद बच्ची को मानसिक रोग विभाग में दिखाने की सलाह दी। वर्तमान में उसकी हमीदिया अस्पताल के मनो रोग विभाग में काउंसलिंग चल रही है।
केस 2 – नींद की गोलियां खा लीं, पत्नी ने देखा कोलार की एक बैंक अधिकारी ने पत्नी से कहा अब मुझसे नहीं होगा। वे समझ नहीं पाईं कि उन्होंने यह क्यों कहा है। पूछने पर भी वे कुछ नहीं बोले। कुछ देर बाद वे खाना बनाने के लिए किचन में गईं। किसी काम के चलते वापस आईं तो देखा कि पति ने एक साथ कई नींद की गोलियां खा ली थीं। दवा का रैपर भी पास में पड़ा था। उन्होंने परिवार के लोगों को सूचना दी और पति को लेकर अस्पताल पहुंची।
हर जिले में यह व्यवस्थाएं जरूरी
- हर जिला अस्पताल में 24×7 Psychiatric Emergency Unit स्थापित की जाए।
- डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स को संकट प्रबंधन का विशेष प्रशिक्षण मिले।
- टेली-साइकेट्री सेवाओं का विस्तार ताकि दूरस्थ क्षेत्रों में मदद पहुंच सके।
- स्कूलों और कॉलेजों में मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड ट्रेनिंग शुरू की जाए।
मानसिक स्वास्थ्य में यह इमरजेंसी सिच्युएशन डॉ. सोनी बताती हैं कि जब किसी व्यक्ति के विचार, व्यवहार या भावनाएं अचानक खुद के या दूसरों के लिए खतरा बन जाएं। यही मानसिक स्वास्थ्य की इमरजेंसी स्थिति कहलाती है। यह वह दौर होता है जब इलाज या प्रतिक्रिया में देरी जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसे में व्यक्ति को तुरंत चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होती है।
मानसिक स्वास्थ्य की इमरजेंसी के उदाहरण
- आत्महत्या का प्रयास या बार-बार आत्मघाती विचार
- अत्यधिक घबराहट या पैनिक अटैक
- हिंसक या आक्रामक व्यवहार
- नशा छोड़ने के बाद दौरे या भ्रम
- अवसाद या मानसिक संतुलन खो देना
इमरजेंसी मदद की प्रणाली कमजोर
- बहुत कम अस्पतालों में 24×7 साइकेट्रिक इमरजेंसी यूनिट है।
- जिला और छोटे शहरों में प्रशिक्षित मनोरोग चिकित्सकों की भारी कमी है।
- कई इमरजेंसी वार्ड में de-escalation rooms यानी शांत कमरों की सुविधा तक नहीं।
- मरीज को एक अस्पताल से दूसरे में रेफर किया जाता है, जिससे समय नष्ट होता है।
- परिवार को ही संकट संभालना पड़ता है। यही देरी जिंदगी छीन लेती है।





