पोप ने रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए तथा यूक्रेनी लोगों की ‘शहादत’ के लिए हथियार उद्योग को जिम्मेदार ठहराया

अजरबैजान और आर्मीनिया के रास्ते से नागोर्नो-काराबाख में भेजी गयी मानवीय सहायता

लंदन
 अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच विवाद के क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख में  दोनों देशों के रास्ते से मानवीय सहायता भेजी गयी जिसकी वहां अत्यंत आवश्यकता है।

अजरबैजान के इस प्रांत को फिर से अपने कब्जे में लेने और इलाके को पुन:एकीकृत करने के लिए उसकी मूल आर्मीनियाई आबादी के प्रतिनिधियों से वार्ता शुरू करने के बाद यह कदम उठाया गया है। अजरबैजान के फिर से इस क्षेत्र पर कब्जे के बाद कुछ निवासी प्रतिशोध के डर से अपने घर छोड़कर चले गए हैं।

अजरबैजान ने महीनों से इस क्षेत्र की ओर जाने वाली सड़क पर नाकेबंदी की हुई थी जिससे वहां खाद्य सामग्री और ईंधन की भारी किल्लत हो गयी थी। अजरबैजान ने इस सप्ताह क्षेत्र में आक्रामक सैन्य अभियान चलाया था।

नागोर्नो-काराबाख अजरबैजान में है लेकिन 1994 में खत्म हुई अलगाववादी लड़ाई के बाद से ही यह आर्मीनियाई सेना के नियंत्रण में था। आर्मीनियाई बलों ने अजरबैजान के आसपास के बड़े क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया था।

अजरबैजान ने 2020 में आर्मीनिया के साथ छह सप्ताह तक चली लड़ाई में अपने आसपास के क्षेत्र को फिर से नियंत्रण में ले लिया था।

रूस की मध्यस्थता में युद्धविराम किया गया था और 2,000 रूसी शांति रक्षकों का एक दल युद्ध विराम की निगरानी के लिए क्षेत्र में भेजा गया।

अजरबैजान ने मंगलवार को नागोर्नो-काराबाख में जातीय आर्मीनियाई बलों के खिलाफ भारी गोलाबारी शुरू की थी। इसके एक दिन बाद युद्ध विराम की घोषणा की गयी जिससे क्षेत्र में तीसरी बार व्यापक पैमाने पर युद्ध की आशंका खत्म हो गयी।

बहरहाल, नागोर्नो-काराबाख की अंतिम स्थिति को लेकर अब भी प्रश्न बना हुआ है। रूस की समाचार एजेंसी ‘आरआईए नोवोस्ती’ ने शनिवार को टैंक, हवाई रक्षा प्रणालियों और अन्य हथियारों की तस्वीरं‘ प्रकाशित की। ऐसा दावा है कि ये हथियार प्रांत के अलगाववादी बलों ने अजरबैजानी सेना को सौंप दिए हैं।

अजरबैजान के आक्रमण के मद्देनजर रूसी शांतिरक्षकों ने नागोर्नो-काराबाख से सैकड़ों जातीय आर्मीनियाई नागरिकों को निकाला।

आर्मीनिया के विदेश मंत्री अरारात मिर्जोयान ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र से विभिन्न एजेंसियों के प्रतिनिधियों को मानवाधिकारों, मानवीय स्थिति और सुरक्षा स्थिति पर नजर रखने के लिए फौरन नागोर्नो-काराबाख भेजने का आह्वान किया।

अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने शनिवार को एक बयान में कहा कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिनयान से बात की और नागोर्नो-काराबाख में ‘‘जातीय आर्मीनियाई आबादी के लिए गहन चिंता’’ जतायी।

अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव के कार्यालय ने शनिवार को कहा कि बाकू ने नागोर्नो-काराबाख के निवासियों को चिकित्सा देखभाल, भोजन और अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक ‘‘कार्यकारी समूह’’ गठित किया है।

अजरबैजान के प्राधिकारियों ने बताया कि उन्होंने प्रांत में 60 टन से अधिक ईंधन पहुंचाया है।

‘इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस’ ने भी शनिवार को बताया कि उसने लाचिन गलियारे के जरिए नागोर्नो-काराबाख में 70 टन मानवीय सहायता भेजी है।

पोप ने रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए तथा यूक्रेनी लोगों की ‘शहादत’ के लिए हथियार उद्योग को जिम्मेदार ठहराया

पैपल प्लेन
 पोप फ्रांसिस ने रूस के युद्ध में यूक्रेनी लोगों की ‘शहादत’ के लिए हथियार उद्योग को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया और कहा कि भले ही अब हथियारों पर रोक लग जाए लेकिन उनकी पीड़ा समाप्त नहीं होगी।

फ्रांसिस का यह बयान प्रत्यक्ष रूप से पोलैंड की उस घोषणा के संबंध में है जिसमें उसने कहा था कि वह अब यूक्रेन को हथियार नहीं भेज रहा। फ्रांस के मार्सिले से वापसी के दौरान फ्रांसिस से युद्ध के संबंध में प्रश्न किया गया था।

फ्रांसिस ने स्वीकार किया कि वे इस बात से निराश हैं कि वेटिकन की कूटनीतिक पहलों का कोई खास नतीजा नहीं निकला। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के पीछे हथियार उद्योग का भी हाथ है।

उन्होंने उस विरोधाभास को विस्तार से समझाया जिसके कारण यूक्रेन के लोग ‘शहीद’ हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में बहुत से देशों ने यूक्रेन को हथियार दिए लेकिन अब वे उससे हथियार वापस ले रहे हैं। फ्रांसिस कई मौकों पर हथियार उद्योग को ‘‘मौत का सौदागर’’ करार कर चुके हैं।

हालांकि उन्होंने देशों के अपनी रक्षा के अधिकारों पर भी जोर दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं अब देख रहा हूं कि कुछ देश पैर पीछे खींच रहे हैं और हथियार नहीं दे रहे हैं।’’

पोप फ्रांसिस ने कहा, ‘‘यह एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करेगा जहां निश्चित रूप से यूक्रेनी लोग शहीद होंगे और यह अच्छा नहीं है।’’ उनका इशारा पोलैंड के प्रधानमंत्री मतेउज मोराविएक की इस घोषणा की ओर था कि पोलैंड अब यूक्रेन को हथियार नहीं भेज रहा है।

इस दौरान फ्रांसिस ने मार्सिले की अपनी दो दिवसीय यात्रा के बारे में भी बात की जहां उन्होंने यूरोप से अधिक संख्या में प्रवासियों को अपने देशों में आने देने की अपील की।

 

 

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